राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC), अनुच्छेद 22, अनुच्छेद 23, निवारक निरोध, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार।

राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम, 1980 और इसकी संरचना, कार्य और निहितार्थ।चर्चा में क्यों?


हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने एक अभियुक्त की उस याचिका पर सुनवाई की जिसमें उसने अपने विरुद्ध बिहार में दर्ज प्राथमिकियों को तमिलनाडु की प्राथमिकी से जोड़ने की मांग की थी।आरोपी कथित तौर पर कठोर राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम (NSA), 1980 के तहत तमिलनाडु में बिहार के मज़दूरों पर हमले के बारे में फर्जी खबर फैला रहा था।

NSA सार्वजनिक व्यवस्था और राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखने के लिये वर्ष 1980 में बनाया गया एक निवारक निरोध कानून है।
निवारक निरोध कानून भविष्य में किसी व्यक्ति को अपराध करने से रोकने और/या भविष्य में अभियोजन से बचने के लिये उसे हिरासत में लेना है। संविधान का अनुच्छेद 22 (3) (b) राज्य को सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के कारणों से निवारक निरोध और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर प्रतिबंध की अनुमति देता है। अनुच्छेद 22(4) में कहा गया है कि निवारक नज़रबंदी का प्रावधान करने वाला कोई भी कानून किसी व्यक्ति को तीन महीने से अधिक की अवधि के लिये हिरासत में रखने का अधिकार नहीं देगा।


सरकार की शक्तियाँ:


NSA केंद्र या राज्य सरकार को अधिकार देता है कि वह किसी व्यक्ति को राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रतिकूल किसी भी तरह से कार्य करने से रोकने के लिये उसे हिरासत में ले सकता है।
सरकार किसी व्यक्ति को सार्वजनिक व्यवस्था को बाधित करने से रोकने या समुदाय के लिये आवश्यक आपूर्ति और सेवाओं के रखरखाव के लिये भी हिरासत में ले सकती है।

कारावास की अवधि:


इसके तहत हिरासत में रखने की अधिकतम अवधि 12 महीने है।

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद की स्थापना:


यह अधिनियम एक राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के गठन का भी प्रावधान करता है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित मामलों पर प्रधानमंत्री को सलाह देती है।

राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद (NSC):
परिचय:


भारत में NSC एक उच्च स्तरीय निकाय है जो भारत के प्रधानमंत्री को राष्ट्रीय सुरक्षा, सामरिक नीति और रक्षा से संबंधित मामलों पर सलाह देता है। ‘राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद’ (NSC) एक त्रिस्तरीय संगठन है, जो सामरिक चिंता के राजनीतिक, आर्थिक, ऊर्जा और सुरक्षा मुद्दों को देखता है। प्रधानमंत्री NSC का अध्यक्ष होता है। इसका गठन वर्ष 1998 में किया गया था और यह राष्ट्रीय सुरक्षा के सभी पहलुओं पर विचार-विमर्श करता है।

सदस्य:


राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (NSA)
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS)
उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार
रक्षा मंत्री
विदेश मंत्री
गृह मंत्री
वित्त मंत्री
नीति आयोग का उपाध्यक्ष


कार्य:


NSC भारत के प्रधानमंत्री के कार्यकारी कार्यालय के तहत संचालित है, सरकार की कार्यकारी शाखा और खुफिया सेवाओं के बीच संपर्क सुनिश्चित करता है एवं खुफिया तथा सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर नेतृत्त्व को सलाह देता है।
यह देश की सुरक्षा स्थिति की नियमित समीक्षा भी करता है और आवश्यकता पड़ने पर नीतिगत बदलावों पर प्रधानमंत्री को सिफारिशें करता है।
यह सशस्त्र बलों, खुफिया एजेंसियों और कानून प्रवर्तन एजेंसियों सहित देश की सुरक्षा में शामिल विभिन्न एजेंसियों की गतिविधियों का समन्वय करता है।
यह उभरते सुरक्षा खतरों का विश्लेषण कर सरकार को प्रारंभिक चेतावनी देता है और विभिन्न आकस्मिक सुरक्षा संबंधी योजनाएँ तैयार करता है।


राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम की आलोचना:


शक्ति का दुरुपयोग: NSA की प्रमुख चुनौतियों में से एक अधिकारियों द्वारा इसका संभावित दुरुपयोग है। कानून सरकार को एक वर्ष तक बिना मुकदमे के व्यक्तियों को हिरासत में लेने की शक्ति देता है।
असहमति को दबाने या राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिये अधिकारियों द्वारा इस शक्ति का आसानी से दुरुपयोग किया जा सकता है।


मानवाधिकारों का उल्लंघन:

यदि NSA का दुरुपयोग किया जाता है, तो मानवाधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।
कानून मुकदमे के बिना निवारक निरोध का प्रावधान करता है, जिसे निष्पक्ष सुनवाई के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के उल्लंघन के रूप में देखा जा सकता है।


पारदर्शिता की कमी:

NSA के साथ एक और चुनौती निरोध/कारावास प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी है।
बंदियों को अक्सर उनके कारावास के कारणों के बारे में सूचित नहीं किया जाता है और कारावास आदेशों को सार्वजनिक नहीं किया जाता है। पारदर्शिता की इस कमी से अधिकारियों द्वारा शक्ति का दुरुपयोग हो सकता है।

कानूनी चुनौतियाँ:

आलोचकों ने तर्क दिया है कि कानून असंवैधानिक है और भारतीय संविधान के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने भी NSA के तहत जारी किये गए कई हिरासत आदेशों को रद्द कर दिया है।


सीमित प्रभावशीलता:

हालाँकि NSA का उद्देश्य राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु खतरों को रोकना है, इसके बावजूद इसकी प्रभावशीलता सीमित है।
साथ ही यह भी ध्यान देने की बात है कि बिना मुकदमा चलाए किसी व्यक्तियों को हिरासत में लेने से खतरे को रोकने के बजाय कुछ मामलों में यह व्यक्तियों को कट्टरपंथी बनाकर समस्या को बढ़ा भी सकता है।

पारदर्शिता सुनिश्चित करना:

हिरासत में लिये गए लोगों को उनके कारावास के कारणों की जानकारी देकर और निरोध आदेशों को सार्वजनिक करके सरकार को निरोध प्रक्रिया में पारदर्शिता सुनिश्चित करनी चाहिये। इससे अधिकारियों द्वारा सत्ता के दुरुपयोग को रोकने में मदद मिलेगी।

सख्त कार्यान्वयन:

अधिकारियों को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि NSA को कानून के अनुसार, सख्ती से लागू किया जाए और राजनीतिक विरोधियों को लक्षित करने या असहमति को दबाने हेतु इसका दुरुपयोग न किया जाए।


न्यायिक निरीक्षण को मज़बूत करना:

NSA के तहत निवारक निरोध आदेशों के न्यायिक निरीक्षण को यह सुनिश्चित करने हेतु मज़बूत किया जाना चाहिये कि वे मनमाने या असंवैधानिक नहीं हैं।
खुफिया जानकारी एकत्र करने पर ध्यान केंद्रित करना: सरकार को खुफिया जानकारी एकत्र करने और अन्य उपायों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिये जो कि निवारक निरोध का सहारा लिये बिना राष्ट्रीय सुरक्षा हेतु खतरों को रोकने में मदद कर सकते हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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